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कविता

ग्लोबल युग का बाजीगर

महेश चंद्र पुनेठा


वह शब्दों से अधिक
अपनी चेष्टाओं में बोलता है
आप लाख कहते रहें कि
नहीं होता उसकी चेष्टाओं का असर आप पर

उसके साथ खड़े होकर
आप खुले आसमान को नहीं देख सकते हो
न किसी
पेड़ में बैठी चिड़िया से बतिया सकते हो
न किसी पसंदीदा गीत की धुन गुनगुना सकते हो
उसके करतब
आपको अवकाश ही नहीं देते हैं

उसके करतबों को देख भर कर
नहीं लौट सकते हो आप
आप घर लौटकर आ जाओ
वह आपको घर से ही बुलाकर ले जाएगा
पड़ोसी के घर से होते हुए
आपके घर में घुस आएगा
बच्चे की किताब में छुपकर चला आएगा
आपकी ही बोली-बानी और लय में बतियाएगा
लोकगीत की धुन गुनगुनाएगा
आपके शब्दों के मतलब बदल देगा
और
उसी के बीच अपनी भाषा के बीज बो जाएगा
जैसे साठ के दशक में
अमेरिकी गेंहू के साथ खरपतवार

जन्म से लेकर मृत्यु तक के
हर संस्कार में शामिल हो जाएगा
पत्र-पुष्प-दुर्वा-नैवेद्य
पूजा की थाल में सजा देगा
जहाँ जिस चीज की आवश्यकता महसूस करोगे
पैकेटबंद कर प्रस्तुत कर देगा
जहाँ आवश्यकता नहीं भी होगी बगल में खड़ा रहेगा
जो नहीं भी माँगोगे
मुफ्त में थमा देगा
मुफ्त की अँगुली थामें तुम्हारे भीतर प्रवेश कर जाएगा
झकड़ा जड़ की तरह फैल जाएगा
वर्षों से दमित इच्छाओं को जगा देगा

जब भी अपनों को याद करोगे
चुपके से आपके कंधे पर हाथ धर देगा
आपका ध्यान अपनी जेब की ओर जाएगा
आपको अपने आसपास की दुनिया भीड़ लगने लगेगी
देखने का कुछ नहीं लेता वह
देखते रहिए ...देखते रहिए
आप जितना चाहें उतना देखते रहिए
वह आपको बार-बार देखने के लिए उकसाएगा
उसे पता है कि

देखने से ही प्रेम की शुरुआत होती है
वह नजरों से चलकर
दिल में उतरने की राह जानता है
वह तो आपके दिल पर हाथ धरता है
जेब में तो आपका हाथ खुद चला जाता है
सरेआम जेब कट जाएगी
आप काटने वाले को नहीं अपनी जेब को दोष दोगे

वह यह भी जानता है कि
आप किसकी बात मान सकते हैं
आपको कैसे मनाया जा सकता है
आपके महानायक को
अपने रिंग में लाकर महाझूठ बुलवा देगा
आपके प्रेम और आस्था को
अपना ऐजेंट बनाकर आपके पास भेज देगा
पता ही नहीं चलेगा
कि आप कब उसके हो गए

कभी कला-धर्म-संस्कृति
तो कभी प्रेम की दुहाई देगा
प्रेम की सौगंध खिलाएगा
आपके भीतर
कुछ खास होने का अहसास जगाएगा
जरूरत पड़ी तो
आपके रंग-रूप को टारगेट करेगा
आप गहरी लालसा से कह उठेंगे - काश!
एक कशिश भरी आवाज में

तब आप कुछ सोचेंगे नहीं
बस उसके जमूरे बन जाएँगे
और खुद को धन्य समझने लगेंगे
जैसा-जैसा वह कहेगा
बिल्कुल वैसा-वैसा करते जाएँगे

वह आपको बोतलबंद पानी पिलाएगा
पैकेटबंद खाना खिलाएगा
सुगंधित साबुन से नहलाएगा
आपकी त्वचा की चिंता करेगा
आपकी सफेदी पर नहीं लगने देगा कोई दाग
जो छुपाना चाहोगे छुपा देगा
अंग तो अंग
कृत्रिम भावनाओं तक का प्रत्यारोपण कर देगा
खुद भी खुद को पहचान नहीं पाओगे

आप नहीं भी कहोगे
तब भी
बार-बार पूछने लगेगा
आपकी इच्छाओं के बारे में
आप गदगद होकर
उसकी प्रशंसा करने से खुद को रोक नहीं पाओगे
चार लोगों को और बताओगे

वह तो दुश्मन से भी
सगे की तरह मिलता है
जिसको न हो भूख-प्यास
उसके मुँह में भी पानी ला देता है
यह दूसरी बात है कि
जितना पीते जाओगे उतनी प्यास बढ़ती जाएगी
जितना खाते जाओगे उतनी भूख

नहीं होगा कुछ और तो
वह
कारीगरों की मेहनत की दुहाई देगा
उनकी नायाब दस्तकारी की प्रशंसा करेगा
जरूरत पड़ेगी तो
उनकी तंगहाली को दिखाएगा

यहाँ तक कि वह आपका मॉडल बनाकर
आपके सामने सजा देगा
और उसे आपको ही मुँहमाँगे दाम पर बेच देगा
आपकी कला तो छोड़ो
आपकी भावनाओं को भी स्टीकर बना पेश कर देगा
तीज-त्यौहारों की आत्मा भले मर जाय
लेकिन तीज-त्यौहारों को जिंदा रखेगा

आप लोकसंस्कृति की चिंता करोगे
लोक में बचे या न बचे
वह उसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सजा देगा
पत्थर को बढ़ता हुआ
और मुरदे को चलता हुआ दिखा देगा
चलते-फिरते को मुरदा साबित कर देगा

आप उसके विरोध में भी बोलोगे तो
वह बिल्कुल नाराज नहीं होगा
बस आपकी विरोध की भाषा को विज्ञापन में बदल देगा
आप कहते रहोगे कविता खत्म हो रही है
वह कविता में ही अपनी बात समझाएगा

वह बेचना ही नहीं
खरीदना भी जानता है
एक भव्य मूर्ति गढ़ेगा अपने मनपसंद राजा की
उसके खूनी दाँतों और हाथों को
चम्म चमकाएगा
और आपके वोट को खरीद लेगा
सिर्फ वादे पर
आपको पता भी नहीं चल पाएगा
कि आपने अपने वोट को बेच दिया है

सोचो जरा
उसके हाथों वोट बिकने के बाद फिर भला
आपके पास क्या रह जाएगा?

यह ग्लोबल युग का बाजीगर है
इसे आपका
बाएँ चलना बिल्कुल पसंद नहीं
सीधे-सीधे कुछ नहीं कहेगा
एक आभासी बायाँ खड़ा कर
आपको दाएँ साबित कर देगा

माना
आप उससे अपना हाथ नहीं छुड़ा सकते
पर उसके हाथ की
कठपुतली बनना भी तो ठीक नहीं।

 


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